शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

नाभी से चरम सुखानुभूती



नाभी से चरम सुखानुभूती

नाभी से चरम सुख की अनुभूति प्राप्‍त करना युवा महिला पुरूष दोनो में सदियों से होता चला आया है । युवा अवस्‍था के आते ही मनुष्‍य सुख की अनुभूति की तलाश में रहता है ,इस प्रकार की सुखानुभूति का प्रमुख कारण हमारे शरीर में युवा अवस्‍था के आते ही सैक्‍स हार्मोस का निर्माण है । कामवासना की पूर्ति न होने पर विभिन्‍न प्रकार के मानसिक रोग होने लगते है । जिसके बारे में उसे स्‍वय नही मालुम होता । युवावस्‍था के आते ही युवा शारीरिक सुख की तलाश में रहता है, विरूद्ध लिंग के प्रति आकृषण एक नेचुरल प्रतिक्रिया है, परन्‍तु समाजिक मर्यादाओं ,तथा कानूनी प्रक्रियाओं के चलते इसे आसानी से प्राप्‍त नही किया जा सकता, परन्‍तु उसे शारीरिक सुख की मॉग तो यथावत रहती है, ऐसे में यदि उसके इस शारीरिक सुख की मॉग पूरी न हुई तो वह विभिन्‍न प्रकार के उपक्रमों का सहारा लेता है जैसे स्‍वाप्रेम जिसमें युवा स्‍वंय अपने ही शरीर के अंगों से प्‍यार करता है, उसे सहलाता है विरूद्ध लिंग के शारीरिक अंगों की कल्‍पना करता है, यहॉ तक कि उसी प्रकार के कपडे पहन कर अपने अंगों को निहारता है, फिर अंतिम चरण में हस्‍थमैथुन कर संतुष्‍टी प्राप्‍त करता है, यह एक नेचुरत प्रतिक्रिया है । परन्‍तु जब यही स्थिति बढ जाती है तब वह एक मानसिक विकार का रूप धारण कर लेती है । हमारे शारीर के बहुत से ऐसे अंग है जो अति संवेदनशील अंग कहे जाते है इन संवेदनशील अंगो को सहलाने से सुख की अनुभू‍ति होती है । इनमें नाभी भी एक ऐसा अंग है जिसके अन्‍दर के भाग को सहलाने से पूरे शरीर में सिंरहन सी दौड जाती है खॉस कर यौन अंगों में इसका अहसास होता है । महिलाओं द्वारा सुखानुभूति का अहसास :- प्राय: महिलाओं पर सामाजिक बन्‍धन अधिक होता है एंव वे अपनी कामवासनाओं को दबाती रहती है, परन्‍तु युवावस्‍था के आते ही उनके शरीर के शारीरिक परिवर्तन शरीर के विभिन्‍न अंगों के उतार चढाव उन्‍हे इसका अहसास हमेशा कराते रहते है । महिलाये स्‍वंम अपने ही शरीर के ऐसी बनावट से प्रभावित हो कर उन्‍हे देखती सहलाती है एंव चाहती है कि उसे कोई देखे उसका स्‍पर्श करे परन्‍तु ऐसा संभव नही हो पाता इसलिये वे अपने इस कामवासनाओं की पूर्ति अकेले में स्‍त्रीसुलभ अंगों को देखती है उनका स्‍पर्श करती है ।

प्राय: युवा स्‍त्रीयॉ सुखानुभूति हेतु नाभी जैसे संवेदन शील अंग को अपना टारगेट बनाती है । वैज्ञानिकों का मानना है कि नाभी व नाभी के आप पास के उदर स्‍थल पर स्‍पर्श का बहुत ही सुखमय व आनन्‍ददायक प्रभाव होता है । नाभी के मध्‍य भाग में तो महीन स्‍पर्श से पूरे शरीर व गुप्‍त अंगों में सिरहन सी दौड जाती है । इसी लिये अधिकाशा युवा महिलाये जिनकी शादीयॉ नही हुई होती है या जो पुरूष स्‍पर्श से वंचित रह जाती है वे प्राय: नाभी के इस स्‍पर्श हेतु विभिन्‍न प्रकार के उपक्रमों का सहारा लेती है ।
नाभी व उसके आस पास स्‍पर्श हेतु जीव जन्‍तुओं का सहारा :- चूंकि नाभी के मध्‍य का भाग अत्‍याधिक संवेदनशील होता है साथ ही नाभी प्रदेश का भाग जिसे हम पेट कहते है यह भी स्‍पर्श के प्रति अति संवेदनशील होता है । युवा स्‍त्रीयॉ नाभी के उपर किसी बर्तन में ऐसे कीडे मकोडे जो काटते नही है उन्‍हे भर कर नाभी पर उल्‍टा कर ढक देते है इससे उन कीडों के चलने से पेट पर गुदगुदी का अहसास होता है यदि यही कीडे नाभी के अन्‍दर के भाग पर हलचल करते है तो यह गुदगुदी का अहसास कई गुना बढ जाता है यहॉ तक कि इस सुखानुभूति के अहसास से कई महिलाओं का वीर्य निकल जाता है एंव उन्‍हे असीम सुख की अनुभूति होती है । नाभी पर प्राय: इस प्रकार के छोटे कीडों का प्रयोग करते है जो कॉटते नही हो या कॉटे भी तो उससे किसी प्रकार का नुकसान न हो इसके लिये प्राय: काकरोज ,चिडडा , खटमल , या इसी प्रकार के छोटे नुकसान रहित कीडों का प्रयोग करती है । कुछ महिलाये तो इस चरम सुखानुभूति के अहसास के लिये अपने पेट व नाभी पर मधु मख्‍खीयों तक को बर्तन में रख कर छोड देती है वैसे मधुमख्‍खी तभी काटती है जब उसे पकडने या छेडने का प्रयास किया जाये यदि उसे पेट पर रख बर्तन से ढक दिया जाये तो वह पेट पर धुमती रहती है उसके चलने से पेट पर बारीक स्‍पर्श का अहसास होता है यदि वह नाभी के अन्‍दर गई तो फिर समक्षो की यह अहसास इतना बढ जाता है कि कभी कभी महिलाये इस परमसुख से पागल सी हो जाती है एंव नाभी के अन्‍दर मधुमख्‍खीयों को काटने के लिये उकसाती है नाभी पर मधुमख्‍खी के काटने से र्दद तो होता है परन्‍तु किसी प्रकार का नुकसान नही होता । इसी प्रकार कई इसी प्रकार के प्रकरणों में देखा गया है कि कई महिलाये इस प्रकार के स्‍पर्श सुखानुभूति के अहसास हेतु अपने पेट व नाभी पर बारीक चीटियों को किसी बर्तन में रख उल्‍टा देती है । इससे चीटियों के चलने से बारीक स्‍पर्श अनुभव होता है चीटियों का नाभी के अन्‍दर चलने के कारण जो स्‍पर्श अहसास अनुभव होता है उससे उन्‍हे चरम संतुष्‍टी मिलती है । चीटियों का स्‍वभाव है कॉटना थोडी देर तक तो चीटियॉ पेट पर एंव नाभी के अन्‍दर चलती रहती है बाद में वह पेट की त्‍वचा व नाभी पर काटना शुरू करती है इनके कॉटने से केवल सूजन आती मामूली सा र्दद होता है परन्‍तु किसी प्रकार का कोई खॉस नुकसान होते अभी तक तो नही देखा गया है ।
बास्‍तविक घटनाये :- यहॉ पर किसी का नाम दिये बैगेर कुछ बातचीत के अंश दिये जा रहे है । कालेज गर्लस जो हॉस्‍टल में अपने गर्लस साथीयों के साथ रहती थी इसकी उम्र लगभग 25 26 वर्ष के आस पास होगी, लम्‍बे समय से घर परिवार से दूर रहना पढाई का बोझ जैसी कई मानसिक परेशानीयों के बीच ये शारीरिक सुख की तलाश में रहती परन्‍तु गर्लस हॉस्‍टल के कडी पावदियों के कारण ये लोग कुछ भी नही कर पाती थी । उन्‍होने किसी मैग्‍जीन में पढा था कि अफिका की अधिकाश ऐसी महिलाये जिनकी या तो शादीयॉ नही होती या फिर पुरूषों से वंचित रह जाती है वे अपनी कामवासना की पूर्ति हेतु पेट व नाभी पर छोटे छोटे ऐसे की‍डे जिनके चलने से नाभी व पेट पर स्‍पर्श का अहसास हो उसे किसी बर्तन में रख पेट व नाभी पर उल्‍टा देती । कीडों के चलने से पेट व नाभी पर महिन स्‍पर्श का अहसास होता जो उन्‍हे चरम सुख की
अनुभूति कराता था । हॉस्‍टल की एक गर्लस ने इसे अजमाना चाहा उसने एक काकरोज पकडा पलंग पर लेट उसने अपनी नाभी पर रखा उपर से एक खोखला बर्तन पेट पर उल्‍टा दिया । काकरोज के पेट पर चलने से उसे स्‍पर्श का सुखद अहसास हुआ वह इस अहसास को कई घंटों महसूस करती रही उसने इसकी जानकारी अपनी एक सहपाठी को दिया परन्‍तु वह काकरोज से डरती थी परन्‍तु वह इस अहसास को अजमाना चाहती थी इस लिये एक छोटी सी मछली एंव एक मेडक को एक साथ नाभी पर रख पेट पर बर्तन को उल्‍टा दिया मछली के तडपने व मेडक के चारो तरफ चलने से इतना सुखद अहसास हुआ कि थोडी ही देर में उसका वीर्य निकल गया यह बात उन्‍होने अपने अन्‍य साथीयों को बतलाई उन्‍होने भी इसे अजमाया फिर क्‍या था प्राय: हॉस्‍टल की सभी लडकीयॉ इस चरम सुख की अनुभूति हेतु अपने पेट व नाभी पर इस प्रकार की कीडों को रखने लगी एंव इसका आनन्‍द उठाने लगी । कुछ युवा गर्लस ने तो यहॉ तक की अपने पेट पर चीटियॉ एंव मधुमख्‍खीयों तक को रखा उनसे कटवाया कहते है काटने पर यह सुखानुभूति कई गुना बढ जाती है ।
एक सत्‍य वार्ता : एक सत्‍य वार्ता परमिन्‍दर कौर बदला नाम इस महिला की उम्र 40 वर्ष के आस पास थी जो विधवा थी बच्‍चे भी नही थें कामवासनाओं की पूर्ति हेतु तडपती थी एक दिन बीमार पडने पर जब वह लेडीस डॉ0 के पास गई तो डॉ0 ने देखा कि उसकी नाभी व नाभी के चारों तरफ किसी कीडे मकोडे के कॉटने जैसे निशान है डॉ0 ने पूछा कि यह तो किसी कीडों के कॉटने के निशान है ,डॉ0 के कहने पर उसने अपना पेट कपडे से ढक लिया डॉ0 ने पूछा आप के कितने बच्‍चे है उसने कहॉ बच्‍चे नही है मै विधवा हूं , डॉ समक्ष गया यह निशान उसके अतृप्‍त कामवासना की वहज से है ,फिर डॉ0 के बार बार पूछने पर उसने बतलाया कि वह कामवासना की पूर्ति हेतु अपने पेट व नाभी पर चीटों को बर्तन से ढक कर कटवाती है उनके पेट व नाभी पर चलने से मुझे सुख की अनुभूति का अहसास होता है यहॉ तक कि यदि कोई चीटा मेरी नाभी के अन्‍दर कॉटता है तो मै पागल सी हो जाती हूं मेरा वीर्य निकल जाता है एंव इस समय मुझे पूर्ण संतुष्टि प्राप्‍त होती है । मैने तो मधु मख्‍खीयों तक से नाभी के अन्‍दर कटवाया है मधुमख्‍खीयों का नाभी के अन्‍दर कॉटने से मुझे पूर्ण संतुष्‍टी का अहसास होता है । क्‍योकि नाभी के अन्‍दर कॉटने से मेरे गुप्‍त अंगों में हलचल सी मच जाती है पूरे शरीर में सिंरहन सी होने लगती है डॉ0 ने पूछा आप को किसी पुरूष का साथ नही मिलता क्‍या ? उसका जबाब था हॉ मिलता है परन्‍तु उससे मुक्षे उतना आनन्‍द नही आता जितना मै नाभी व पेट पर किसी कीडे मकोडों के चलने से होता है यहॉ तक कि नाभी के अन्‍दर चीटी मधुमख्‍खीयों के कॉटने पर तो मै पागल सी हो जाती हूं मुक्षे चरम संतुष्‍टी का अहसास होता है ।
इस प्रकार के सुखानुभूति का उदाहरण यदि हो तो कमेन्‍ट कॉलम में अवश्‍य दीजियेगा ।
असामान्‍य मनोविज्ञान के इस प्रकार के और भी उदाहरण है जो हम असामान्‍य मनोविज्ञान शीर्षक में अगामी अंको में देने का प्रयास कर रहे है यदि आप के पास इस प्रकार के केश हो तो कृपया शेयर अवश्‍य करे ।

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